गुरुवार, 3 जून 2010

प्रशंसा किस काम कि

बिनोवा जी अपने पत्रों को संभाल कर रखते थे
और उन सबका यथाबत उत्तर भी दिया करते थे!
एक दिन उनके पास गाँधी जी का एक पत्र आया!
उन्होंने उसे पढ़ कर फाड़ दिया ! पास कमल नयन
बजाज भी बैठे थे ! उन्हें यह देख कर आश्चर्य हुआ!
बे अपनी उत्सुकता दबा न सके और उन्होंने उन फटे
टुकड़ों को जोड़ कर पढ़ा तो बिनोबा जी कि प्रसंसा से
ओत-प्रोत पाया !
आश्चर्य सहित बजाज जी ने पूछा, आपने यह पत्र फाड़
क्यों दिया? इसे संभाल कर रखना था! स-स्मित बिनोबा
जी ने उतर दिया, यह पत्र मेरे लिए बेकार है, इसलिए
फाड़ डाला! बापू ने अपनी बिशक दृष्टी से मुझे जैसा देखा,
इस पत्र में लिख दिया! पर
मेरे दोषों कि उन्हें क्या खबर? बैसे भी यह प्रशंसा,
मेरे किस काम कि है हाँ? कोई मेरे दोष बताबे,तो
मैं बराबर उनका ख्याल करूँगा !


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"" दोष गुप-छुप रहकर जीवित रहता है! ""
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